भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता: एक नई साझेदारी की शुरुआत
-डॉ राकेश आर्य
भारत और ब्रिटेन के बीच हाल ही हुआ नया आर्थिक समझौता नई विश्व व्यवस्था में आपसी संबंधों का मजबूत आधार बनाने का काम करेगा। करीब तीन साल के लंबे इंतजार के बाद दोनों देशों ने आखिरकार मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। यह संधि एक ऐसे वक्त पर हुई है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल है।
भारत और ब्रिटेन का मुक्त व्यापार समझौता कई अर्थों में बेहद महत्वपूर्ण और दोनों देशों के लिए अनुकूल भी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने कहा है कि यह समझौता ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को गति देगा और ब्रिटिश कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होगा। समझौते के प्रावधानों के अनुसार, व्हिस्की, कार, ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में काम करने वाली ब्रिटिश कंपनियां अब कहीं अधिक आसानी से भारत में निर्यात कर सकेंगी। इसके अलावा, करीब 99 प्रतिशत भारतीय निर्यात ब्रिटेन में शुल्क-मुक्त कर दिए गए हैं। भारत से जाने वाले रत्न-आभूषण, समुद्री उत्पाद, वस्त्र, खाद्य तेल आदि उत्पादों पर अब कोई कर नहीं चुकाना होगा। इसी कारण भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समझौते से व्यापार, निवेश, विकास व रोजगार-सृजन के नए रास्ते खुलने की उम्मीद जताई है।
ब्रिटेन के नजरिये से देखें, तो उसे इस समझौते की अधिक जरूरत थी। मुख्यतः 2020 के बाद से, जब वह यूरोपीय संघ से अलग हुआ था, उसे ऐसी बड़ी आर्थिक शक्तियों की तलाश रही है, जो उसकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सके। भारत इस पैमाने पर खरा उतरता है। भारत फिलहाल चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है, जो जल्द ही शीर्ष तीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होने वाला है। इस दृष्टि से, यह ब्रिटेन के हित में है कि वह भारत का साथ लेकर आगे बढ़े। वहीं, भारत की इच्छा समान सोच वाले देशों के साथ अच्छे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंध विकसित करने की रही है। भारत उन तमाम ऐसे देशों का साथ चाहता है, जिनसे नई दिल्ली की आर्थिक क्षमता को बल मिले। इससे भारत की विकास दर में भी बढ़ोतरी होगी। अतः, इस समझौते में दोनों देशों के हितों को पूरा करने की भरपूर संभावना दिखती हैं।
‘ब्रेग्जिट’ के बाद से ब्रिटेन का किसी देश के साथ यह सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अधिक महत्वाकांक्षी समझौता है। एक तरह से यह समझौता उसकी विदेश और आर्थिक, दोनों नीतियों को फिर से परिभाषित कर रहा है। अब उसके बाजार में आने वाले भारतीय उत्पादों की कीमतें घट जाएंगी। चूंकि 99 फीसदी भारतीय उत्पाद अब टैरिफ-मुक्त हो गए हैं, इसलिए वहां भारतीय कंपनियों को विस्तार करने का मौका मिलेगा। इसमें ब्रिटेन में काम कर रहे भारतीयों को सामाजिक सुरक्षा में मिलने वाली तीन साल की छूट भी काफी मददगार साबित हो सकती है। माना जा रहा है कि 75,000 भारतीयों को इसका लाभ मिलेगा। इस तरह की व्यवस्था ब्रिटेन ने अमेरिका, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ के देशों के साथ ही कर रखी है।
एक नया आर्थिक रोडमैप
देखा जाए, तो इस समझौते की नींव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तैयार की है। वह जब से व्हाइट हाउस में आए हैं, अपने टैरिफ संबंधी फैसलों से लगभग सभी देशों की उलझनें बढ़ा रहे हैं। आलम यह है कि कई देश अमेरिकी बाजार से विमुख होने के बारे में सोचने लगे हैं और अपने उत्पादों के लिए नए बाजारों की तलाश कर रहे हैं। भारत और ब्रिटेन जैसे देश आर्थिक नीतियों में स्थिरता के समर्थक रहे हैं। इसीलिए, उन्होंने इस समझौते पर मुहर लगाई है, जिसे व्यापक आर्थिक व्यापार समझौता भी कहा जा रहा है। कुछ उद्योगों में भारत को काफी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा था, क्योंकि उनमें श्रम का ज्यादा इस्तेमाल होता है। अब उसमें भारत को फायदा मिल सकता है। ब्रिटेन के बाजार में भारतीय उत्पादों को जो औसतन 15 प्रतिशत शुल्क देना पड़ता था, वह भी घटकर 5 प्रतिशत पर आ गया है। इन सबसे एक नया आर्थिक रोडमैप तैयार होने की संभावना है।
लेकिन, इस समझौते में पेशेवर कामगारों के आवागमन की चर्चा तो है, पर भारत ने वीजा व्यवस्था में जो नरमी की मांग की थी, मुख्यतः आईटी और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों की सुविधा का जो मुद्धा उठाया था, वह उतना प्रभावी रूप से समझौते में शामिल नहीं हो सका है। मगर भारत ने उदारता दिखाने का ही संकेत दिया है, ताकि बन रही ‘ग्लोबल वैल्यू चेन’ में वह बेहतर तरीके से शामिल हो सके। ‘ग्लोबल वैल्यू चेन’ का आशय किसी उत्पाद या सेवा के निर्माण व वितरण की उस श्रृंखला से है, जो कई देशों में फैली होती है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैला उत्पादन नेटवर्क है, जिसमें विभिन्न देशों में स्थित कंपनियां एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं। चूंकि भारतीय उद्योग लगातार अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से मुकाबला कर रहे हैं, इसलिए इसमें भारत का शामिल होना लाभदायक हो सकता है।
ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन की नई दिशा
इस समझौते का एक ओर पहलू भी है. ‘ब्रेग्जिट’ के बाद से ब्रिटेन ऐसी विदेश नीति की खोज में है, जिसमें नए अवसरों की उसकी तलाश पूरी हो सके। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जिस तरह से नए समीकरण बन रहे हैं, उसमें उसे भारत से बेहतर कोई दूसरा साथी नहीं मिल सकता था। प्रधानमंत्री मोदी की पूरी यात्रा में इसकी झलक भी दिखती है। इस दौरे में आर्थिक समझौता तो किया ही गया, तकनीक, रक्षा और सुरक्षा, शिक्षा आदि पर भी आपसी संबंधों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है। दोनों देशों के बीच आम लोगों के जुड़ाव के ऐतिहासिक संबंध हैं। इस रिश्ते को भी नए ढांचे में गढ़ने की जरूरत बताई गई है। भारत-विरोधी चरमपंथी समूहों पर कड़ी कार्रवाई करने की बात कही गई है। चूंकि दोनों देश इस समस्या से जूझ रहे हैं, इसलिए सरकारी और खुफिया तंत्रों के एक साथ काम करने पर जोर दिया है।
अंततः, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक व सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रही है। दोनों देश न केवल आत्मविश्वास से भरे हुए हैं, बल्कि एक-दूसरे के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए भरपूर उत्साह दिखा रहे हैं। इसीलिए यह गलत नहीं कहा जा रहा कि नई विश्व व्यवस्था में दोनों देश आपसी संबंधों को नए सिरे से पुनर्परिभाषित कर रहे हैं।