श्रीमती पद्मा अंग्मों लद्दाख की निवासी हैं. अपनी उच्च शिक्षा दिल्ली में पूरी करने के पश्चात उन्हें महसूस हुआ कि उन्हें दिल्ली जैसे शोर शराबे वाले माहौल की आदत नहीं है एवं उन्हें यहाँ रहकर वह संतुष्टि नहीं मिल पा रही जो उन्हें लद्दाख वापस लौट आई. घर वाले चाहते थे कि चूँकि उनके उच्च शिक्षा दिल्ली में हुई है तो वह कुछ नौकरी कर के पाने जीवन को आगे बढाए. परंतु उनका मं सदैव से लद्दाख में ही बसने का था एवं वहां की आर्थिक परिस्थियों के लिए ही कुछ बदलाव लाने का प्रत्यन करने का था.
इस दौरान उन्हें नरोप्पा फेलोशिप के प्रोग्राम के बारे में पता चला और वह वहां पर अपनी किस्मत को आजमाने के लिए चली गयी. वहां पर उनकी मुलाकात उनकी तीन को फाउंडर से भी हुई. सभी को फाउंडर का यह मानना था कि जहाँ लद्दाख में खेती की प्रथा विलुप्त होती जा रही है वहीँ लद्दाख के फल-फूल एवं जड़ी बूटियां जो की इंसान के स्वास्थ्य के लिए बहुत मह्त्वपूर्ण रखते हैं उनका उपयोग लद्दाख के रहवासियों के जीवन में कम होता जा रहा है. और इसी विचारधारा को आगे बढते हुए उन्होंने शुरुवात करी.
” नीमा गोस-गोस की” जिसका हिंदी में अर्थ सूरजमुखी होता है. मात्र पांच हज़ार लगाकर सन 2020 में उन्होंने अपने व्यवसाय की शुरवात की एवं जड़ी बूटियां बेचने लगे. वहां प्र लगने वाले सभी फ़ूड फेस्टिवल में जाया करते. परन्तु यह बेहद मुश्किल भरा कार्य था. तब उन्हें उनकी मेंटर ने जड़ी बूटियां को सुखाकर उन्हें पाउडर फॉर्म में एवं सूप में बदलने की सलाह दी. उन्होंने उन्हें बताया कि इसका विदेशी मार्किट बहुत बड़ा है. चुकीं कंपनी शुरुवाती दौर में कुछ खास रेवेनुए नहीं बना रही थी तो उनके दो फाउंडर उन्हें छोड़ चले गए.
परन्तु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी एवं व्यवसाय को आगे बढाने के लिए निरंतर मेहनत करती रहीं. आज उनके उत्पादन विदेश में भी प्रख्यात है एवं उनके साथ दो को फौंदेर्स और भी जुड़ें हुए है.