Book Review by Prof. R.K Mittal, Member UGC
डोंट बिलीव एवरीथिंग यू थिंक
लेखक : जोसेफ नुएन ( Joseph Nguyen)
यह पुस्तक हमारे मानव अनुभव की समझ का एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह बताती है कि हम अपने कष्टों से मुक्ति कैसे पा सकते हैं और मनचाही चीजों को कैसे पा सकते हैं। लेखक मानते हैं की आपकी सोच आपकी पीड़ा की शुरुआत और अंत है । पुस्तक एक मार्गदर्शक के रूप में आपकी सोच को स्वस्थ बनाने और जीवन को उपयोगी बनाने मैं सहायक हो सकती है। लेखक के अनुसार दर्द (pain )अनिवार्य है पीड़ा ( sufferings ) से बचा जा सकता है यह वैकल्पिक है। दर्द शारीरिक है पीड़ा भावनात्मक है। हमें अपने दुखों के लिए दुनिया को दोष नहीं देना चाहिए। एक कमरे में दो लोग बैठे हैं एक खुश तो दूसरा दुखी है , ऐसा क्यों ? क्योंकि दोनों वास्तविकता को अलग अलग तरीके से देखते हैं। वास्तविकता तो एक ही है दोनों का दृष्टिकोण अलग है। किसी चीज को हम कैसे देखते है यह महत्वपूर्ण है। ट्रैफिक जाम से कोई दुखी हो सकता है तो कोई उसे सामान्य बात मान सकता है। आप जिस चीज से नफरत करते हैं उसका विचार आते ही आप को बुरा लगने लगता है सोचिए अगर आप विचार को ही अपने मन से निकाल फेंकते हैं तो आप कितना हल्का महसूस करेंगे। बस मन को समझाने की बात है। दुनिया में जो घटित हो रहा है वह आपको बुरा महसूस करने पर मजबूर नहीं करता । आपकी उन चीजों के प्रति प्रतिक्रिया उन चीजों के बारे बुरा महसूस कराती है। मन की नकारात्मकता को बाहर फेंकिए और अपने लिए दुख को पैदा करना बंद कीजिए। लेखक के अनुसार मानव का दिमाग इतना विकसित हो गया है कि वह खतरों को ध्यान रख कर सबसे खराब स्थिति की कल्पना कर हमें जीवित रखने में कुशल है। हंटर युग में जीना मात्र चुनौती थी तब यह सही था आज नहीं, इस सोच ने मनुष्य के लिए अनावश्यक चिंता और नकारात्मकता पैदा की है। जीवन का असली मकसद शांति, प्यार ,आनंद पाना है , परन्तु मन का ध्यान इन पर न हो कर कहीं और भटक जाता है। मन को गहरी चीज – चेतना , आत्मा पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। यही आनंद और शांति का द्वार है।
लेखक विचारों ( thoughts) और सोच ( thinking) में अंतर करते हैं। विचार ऊर्जा प्रदान करते हैं हमारे मन में उभरते रहते हैं , जब हम सुखी , शांति , प्यार महसूस करते हैं तब स्वाभाविक रूप से सकारात्मक विचार उभरते हैं , इन पर हमारा नियंत्रण नहीं होता ।सोच खाना चबाने जैसा है , मन में आए ideas को छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ कर विश्लेषण करने में। इन पर जायदा ध्यान देने से नकारात्मकता और चिंता बढ़ सकती है। लेखक मानते हैं विचार बनाते हैं सोच नष्ट करती है। विचार रंग बिरंगे रंगों की बूंदे हैं जो रोमांच और रचनात्मकता से भरपूर है। इसका प्रयोग अपने सपनों को पूरा करने में किया जा सकता है। अत्यधिक सोचना ( overthinking) किसी भी रंग को गंदा कर सकता है , यह किसी रंग मैं अधिक पानी मिलाने जैसा है जो असली रंग को फीका कर देता है , जो आपके विचारों की वास्तविकता को कमजोर कर देता है। अतः शुद्ध विचार को अपनाओ और अधिक सोचने से बचे। लेखक आगे मन, चेतना और विचार की धारणा को समझा कर उसे जीवन के उतार चढ़ाव को सही तरीके से निपटाने के शक्तिशाली उपकरण के रूप मैं देखते हैं। लेखक मानते हैं की हमें अपनी सोच को रोकने की बजाय उसे बहते रहते देना चाहिए, एक स्वच्छ चलते जल की तरह। इसका मतलब यह नहीं की आप सोचना बिल्कुल बंद कर दें । बल्कि आपको जरूरत से ज्यादा विश्लेषण करने से बचना है। लेखक का मानना है कि कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता , हमारी सोच इसे ऐसा बनाती है , हमें गलत या सही पर केंद्रित करने और दूसरों को बेहतर या बुरा साबित करने की बजाय जो हमारे सामने है उसमें सच्चाई की तलाश करनी चाहिए। नकारात्मक भावनाओं पर काबू पाने के लिए हमें यह पहचानना होगा कि हमारी सोच ही हमारी भावनाओं का मूल कारण है इसे प्यार से अपनाना चाहिए अंततः यह स्वयं ही समाप्त हो जाएगी और हम प्रेम, आनंद , शांति की स्थिति में लौट सकेंगे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के अनुसार the intuitive mind is a sacred gift , and the rational mind is a faithful servant. We have created a society that honours the servant and has forgotten the gift . इंट्यूटिव माइंड जनता है सही , गलत क्या है उस पर भरोसा रखो और ज्यादा सोच विचार से बचो। अंतर्ज्ञान व्यक्तिगत विकास और सफलता के लिए एक शाक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग करने के लिए हमें स्वयं पर भरोसा करना होगा और आंतरिक ज्ञान मैं विश्वास करना होगा । जीवन पूरी तरह से हमारे नियंत्रण से बाहर है लेकिन हम अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं जो हमारी मूल समस्याओं और नकारात्मक भावनाओं का मूल कारण है। लेखक के अनुसार मन की कल्पना एक ऐसे कमरे के रूप मैं करें जिसमें फर्नीचर( विचार) भरे पड़े हैं ।इस कमरे मैं और फर्नीचर (नए विचार) तभी आ सकते हैं जब आप उनके लिए जगह बनाएंगे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिशन और आइंस्टीन भी ऐसा करते थे। एडिसन अपने दिमाग को भटकाने के लिए गेंदों के साथ झपकी लेते थे और आइंस्टीन अटकी सोच से मुक्त होने के लिए वायलिन बजाते थे। याद रखे आपका दिमाग एक शोरगुल वाला बाजार है जहां चारों और तरह तरह के विचार भरे हुए हैं । जब आप इन विचारों को बढ़ावा देना बंद कर देते हैं तो शोर शांत हो जाता है और जब आप आंतरिक ज्ञान को सुनते हैं तो आपके भीतर से आने वाली यह आवाज आपको अनंत शांति , स्पष्टता और चमत्कार प्रदान करने वाली होगी।लेकिन इसके लिए अभ्यास की जरूरत होती है। यह पुस्तक हम सब में एक नई सोच पैदा करने वाली पुस्तक है , अतः इसको पढ़ना सबके लिए उपयोगी है। पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध है।