यह पुस्तक प्रसिद्ध लेखक मॉर्गन हाऊसेल द्वारा निजी पैसे के बेहतर प्रबंधन पर लिखी गई है, और उदाहरणों के माध्यम से समझाया गया कि लोग किस तरह अपनी
सोच समझ की बजाय भावनाओं के आधार पर वित्तीय निर्णय लेते हैं ।
लेखक ने पैसे के बारे व्यक्ति की सोच को बेहतर बनाने का विश्लेषणात्मक अध्ययन कर धन (wealth), लालच (greed) और खुशी(happiness) पर बहुमूल्य जानकारी हम सब के समक्ष रखी ।
पहला, पैसे के एकत्रीकरण पर घटती सीमांत उपयोगिता(law of diminishing utility) का नियम लागू होता है तथा एक सीमा के बाद कोई कितना भी पैसा कमा ले, उससे कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता । पैसे का सबसे अच्छा उपयोग, व्यक्ति को स्वतंत्र बनाने का है अर्थात , मजबूरी में कोई गलत काम न करना पड़े, अपनी रुचि का कार्य कर सकना , अपने परिवार और अपने लिए समय निकाल पाना आदि। इसी से व्यक्ति को वास्तविक खुशी मिलती है।
दूसरा, लोग पैसा अपनी जरूरतों के हिसाब से न कमा कर , सामाजिक तुलनात्मक दृष्टि अर्थात उनके दोस्त, रिश्तेदार और पड़ोसी कितना कमा रहे है , के आधार पर करते हैं और इसी अंतहीन रेस में लगे रहते है बिना इसे समझे कि जीवन और समय सीमित है।पैसे को अपनी जरूरतों के हिसाब से कमाना और अच्छा जीवन प्राप्त करने के बाद जीवन के अन्य आयामों जैसे परिवार, दोस्त, शौंक, आत्मसुधार, मानसिक शांति , सेहत, आदि , या फिर जीवन का बड़ा दृष्टिकोण को प्राप्त करना भी आवश्यक है। इसलिए पैसा अपने आप को स्वतंत्र करने के लिए आवश्यक है। बिना फ्रीडम के अधिक पैसे सोने के पिंजरे में रहने के समान है।
लेखक के अनुसार आर्थिक स्वतंत्रता के लिए ज्यादा से ज्यादा बचत आवश्यक जो खर्च कम कर की जा सकती है । बचत = आय–अहंकार( ego) । व्यक्ति ईगो में आकर अधिक खर्च करता है , जो किसी भी तरह उसके उच्च स्तर को नहीं दर्शाता। बिना जरूरत के पैसे खर्च करना ठीक नहीं। अनावश्यक पैसे खर्च करने वाला व्यक्ति अमीर हो सकता है , धनी नहीं क्योंकि वह ऐसा उधार लेकर भी कर सकता है। अमीरी दिखती है धनाढ्यपन नहीं। लाइफ स्टाइल को देखकर किसी के धनी होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
तीसरा, भाग्य और जोखिम का वित्तीय
सफलता और असफलता में बहुत महत्व है। बिल गेट्स की सफलता में भाग्य का बहुत महत्व रहा क्योंकि 1968 में जब लोग कंप्यूटर को नहीं जानते थे तब हाई स्कूल में उनको कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध हुई , यह संयोग ही था । लेखक के अनुसार यदि हम अमीर बनाना चाहते है तो हमें प्रेरणा बड़े बड़े करोड़पतियों और खरबपतियों से नहीं क्योंकि उतना बड़ा भाग्य मिलना मुश्किल है , हमें ऐसे व्यवसायों व अवसरों को खोजना चाहिए जहां प्रतिस्पर्धा कम हो , नए उत्पादकों की एंट्री पर रुकावट हो, उत्पाद नवीन हो या एक लंबी अवधि का निवेश आदि।
चौथा, लेखक वेल्थ सृजन में दीर्घकालीन निवेश को महत्वपूर्ण मानते हैं । वारेन बफेट ने दिखाया कि एक औसत निवेशक यदि निवेश लंबे समय तक रखे तो पैसा कंपाउंड होता ही चला जाएगा। अनेक बार व्यक्ति बाजार लालच में आकर उच्च स्तर पर शेयर खरीद लेता है और मजबूरी में गिरावट आने पर उनको बेचने पर मजबूर होता है । बाजार हमेशा आपकी भावनाओं और मानसिकता को चुनौती देता है , यदि इसको हम झेल लेते हैं तभी दीर्घकालीन निवेश का लाभ होगा। यही अधिक कमाई की कीमत है।
पांचवा , बाजार में लंबी अवधि के निवेश से यह अर्थ नहीं कि निवेशित सभी शेयर अच्छा मुनाफा देंगे । वारेन बफेट द्वारा निवेशित 400-500 स्टॉक्स में से 10-12 स्टॉक्स ही ऐसे थे जिन्होंने असाधारण मुनाफा दिया।
अतः लेखक के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार निवेश में बुद्धिमता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होता है। लालच और डर में किया निर्णय हानिकारक होता है।
हम कह सकते हैं कि साइकोलॉजी ऑफ मनी एक सरल भाषा में लिखी किताब है जिसमें सफल निवेश के लिए वितीय अवधारणाओं एवं तकनीकी ज्ञान को समझने से अधिक भावनाओं और मनोविज्ञानिक प्रवृतियों का अधिक महत्व है को समझाया है। सफल निवेशक बनने के लिए पुस्तक को पढ़ना उपयोगी रहेगा।
प्रो. राज कुमार मित्तल
अखिल भारतीय सह संयोजक
स्वदेशी जागरण मंच